बेंगलुरु के 34 वर्षीय टेक विशेषज्ञ अतुल सुभाष की आत्महत्या के मामले में नई कड़ी सामने आई है। जज रीता कौशिक ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को निर्देश दिया है कि उनके संबंध में कोई भी खबर प्रकाशित न की जाए। इस कदम ने कानूनी विशेषज्ञों के बीच बहस छेड़ दी है कि क्या यह कार्रवाई उचित और कानूनी है।
यह मामला तब सुर्खियों में आया जब अतुल सुभाष ने एक 24-पेज का सुसाइड नोट और 80 मिनट का वीडियो छोड़कर अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया और उनके परिवार पर उत्पीड़न और वसूली के गंभीर आरोप लगाए। उनके निधन के बाद, निकिता सिंघानिया, उनकी मां निशा और भाई अनुराग को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
अब, जज रीता कौशिक के वकील होने का दावा करने वाले अधिवक्ता क्षितिज तिवारी ने गूगल, फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसे बड़े प्लेटफॉर्म्स को नोटिस जारी कर उनके बारे में जानकारी के प्रसार पर रोक लगाने की मांग की है।
कानूनी विशेषज्ञ इस मामले में विभाजित हैं। कुछ का कहना है कि जज कौशिक का यह कदम उनकी निजता और न्यायिक गरिमा की रक्षा के लिए हो सकता है। वहीं, अन्य इसे न्यायिक अधिकारों का अतिक्रमण मानते हैं और इसे एक चिंताजनक मिसाल बताते हैं।
इसके अलावा, इस बात पर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या किसी मौजूदा जज का उसी अदालत से वकील नियुक्त करना हितों के टकराव को जन्म देता है। इस स्थिति ने मामले की कानूनी और नैतिक जटिलताओं की व्यापक समीक्षा की मांग की है।
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, यह मामला न्यायपालिका और मीडिया के संबंधों के साथ-साथ ऐसे मामलों में कानूनी ढांचे पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।