रायपुर, अक्टूबर 2025। बेमेतरा का वह हादसा जिसमें एक व्यक्ति की मौत हुई और आठ लोग घायल हुए, केवल एक सड़क दुर्घटना नहीं थी — यह उस गहरी सच्चाई की झलक थी जिसमें सत्ता और प्रभाव ने न्याय को ढक रखा है। इस घटना का केंद्र है 19 वर्षीय आरोपी मेहर सिंह सलूजा और उसके पिता राजेन्द्र सिंह सलूजा, जो कभी मध्यप्रदेश के गुना से विधायक रहे हैं।
26 अक्टूबर 2025 को बेमेतरा की सड़कों पर एक लक्ज़री SUV ने पांच वाहनों को कुचल दिया। गाड़ी चला रहा था मेहर, और नतीजा था एक मौत और कई घायल। जनता ने शव को लेकर थाने तक मार्च किया, तभी जाकर पुलिस ने कार्रवाई की। सवाल उठता है — इतनी देर क्यों हुई? जवाब सीधा है: आरोपी कोई आम युवक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखता है जिसका प्रभाव अब भी ज़िंदा है।
राजेन्द्र सिंह सलूजा पर फर्जी जाति प्रमाणपत्र के सहारे चुनाव लड़ने का आरोप था। मार्च 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराते हुए आदेश दिया कि वे MLA रहते हुए मिले सभी लाभ और पेंशन लौटाएं, और “पूर्व विधायक” की उपाधि का प्रयोग बंद करें। इसके बावजूद उन्होंने विभिन्न अदालतों में CrPC 482 के तहत कई याचिकाएँ दायर कीं ताकि केस को खारिज या टाल सकें — एक पुरानी राजनीतिक रणनीति जिसका उद्देश्य न्याय में देरी करना होता है।
सालों से सलूजा परिवार कई कंपनियों और LLPs से जुड़ा है जिनकी कोई वास्तविक गतिविधि नहीं दिखती। Muscles Wellness LLP, Ezee Finserv Solutions LLP, और Guna City Transport Services Ltd जैसी संस्थाएँ कागज़ पर मौजूद हैं लेकिन न कोई ब्रांडिंग है, न उत्पाद, न वित्तीय लेनदेन — सब कुछ केवल औपचारिक। इन कंपनियों के ज़रिए संपत्ति छिपाने या राजनीतिक प्रभाव बनाए रखने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
सवाल यह भी है कि पुलिस ने इतनी देर क्यों की? स्थानीय प्रभाव, पुराने राजनीतिक संबंध और प्रशासनिक दबाव ने शुरुआती कार्रवाई को रोक दिया। जब जनता ने सड़क पर उतरकर विरोध किया, तभी गिरफ्तारी हुई। यह दर्शाता है कि हमारे सिस्टम में आज भी शक्ति और प्रभाव का वजन न्याय से अधिक है।
बेमेतरा हादसा अब केवल एक सड़क दुर्घटना नहीं रहा। यह प्रशासनिक सुस्ती, न्यायिक ढिलाई और सत्ता की ढाल के बीच जनता के धैर्य की परीक्षा बन चुका है। सलूजा परिवार का इतिहास दर्शाता है कि किस तरह राजनीतिक नेटवर्क कानूनी जवाबदेही से बचने के लिए परत-दर-परत सुरक्षा कवच तैयार कर लेते हैं।
अगर संस्थाएँ अब भी नहीं जागीं, तो आने वाले वक्त में और भी बेमेतराएँ होंगी — जहाँ न्याय तभी आएगा जब जनता उसे थाने तक खींचकर लाएगी।



