बिलासपुर की सड़कों पर बीती रात पुलिस की वही पुरानी तस्वीर दिखी—बैरिकेड, टॉर्च की रोशनी, breath analyzer और मद्यपान कर वाहन चलाने तथा बिना हेलमेट चलने वालों पर चालानी कार्रवाई। देखने में यह कानून व्यवस्था का सख्ती से पालन लगता है, लेकिन शहर में बढ़ते अपराधों और राजनीतिक संरक्षण पाने वाले अपराधियों की सक्रियता के बीच एक बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है—क्या यही पुलिस संसाधनों का सबसे उचित उपयोग है?
ट्रैफिक ड्राइव की चमक-दमक त्वरित कार्रवाई का भ्रम पैदा करती है। चालान की संख्या और जुर्माने की राशि आसानी से आंकड़ों में दिखती है, जिससे प्रशासनिक सक्रियता का प्रदर्शन संभव हो जाता है। लेकिन यही कार्रवाई गंभीर अपराधों की जांच से पुलिस बल को दूर कर देती है। बिलासपुर में जमीन माफिया, नशा तस्करों और राजनीतिक सरंक्षण प्राप्त उगाही गिरोहों की गतिविधियों को लेकर लगातार शिकायतें उठती रही हैं, जिन पर ठोस कार्रवाई का अभाव जनता को लगातार चिंतित कर रहा है।
ट्रैफिक चालान से त्वरित राजस्व प्राप्त होता है, जबकि संगठित अपराधों की जांच में समय, तकनीकी दक्षता और राजनीतिक दबावों का सामना करना पड़ता है। परिणामस्वरूप पुलिस का झुकाव आसान कार्रवाई की ओर अधिक दिखाई देता है, जबकि मुश्किल मामलों को सुलझाने की प्रतिबद्धता कमजोर पड़ती जा रही है। यही स्थिति जनता के विश्वास को कमजोर कर रही है। शहरवासी साफ शब्दों में कह रहे हैं कि उन्हें अपराधियों से सुरक्षा चाहिए, न कि केवल हेलमेट और चालान पर केंद्रित कार्रवाई।
बिलासपुर पुलिस की इस प्राथमिकता ने कानून व्यवस्था की वास्तविकता और दिखावे के बीच गहरी खाई को उजागर किया है। शहर में बढ़ते संगठित अपराधों पर अंकुश लगाने के बजाय ट्रैफिक आंकड़ों में सुधार की कोशिश जनता के प्रति पुलिस की जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है। जनता की अपेक्षा स्पष्ट है—सड़क सुरक्षा महत्वपूर्ण है, लेकिन उससे भी अधिक जरूरी है अपराधियों पर सख्त कार्रवाई और न्याय सुनिश्चित करना।



