पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा ने एक गहरी चिंता को जन्म दिया है, जहां वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर भड़की हिंसा के बाद सैकड़ों हिंदू परिवारों को अपने घर छोड़कर पलायन करना पड़ा है। विशेष रूप से मुर्शिदाबाद के धूलियन क्षेत्र से खबरें आ रही हैं कि 400 से अधिक हिंदू नागरिकों ने अपनी सुरक्षा को देखते हुए क्षेत्र खाली कर दिया और नजदीकी मालदा जिले में पार लालपुर हाई स्कूल जैसे सुरक्षित स्थलों में शरण ली।

इस हिंसा में अब तक तीन लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जिनमें हरगोबिंदो दास और उनके बेटे चंदन दास शामिल हैं। बताया गया है कि दोनों को उनके घर से जबरन घसीटकर बाहर निकाला गया और सामसेरगंज में बेरहमी से हत्या कर दी गई। कई अन्य लोग घायल हुए हैं और पूरे क्षेत्र में भय और असुरक्षा का माहौल व्याप्त है।
हिंसा की घटनाएं सुति और सामसेरगंज जैसे इलाकों में सबसे अधिक देखी गईं, जहां भीड़ ने न केवल वाहनों को आग के हवाले कर दिया बल्कि कई घरों पर भी हमला किया। पुलिस पर भी हमला हुआ और कई जवान घायल हुए। स्थिति के गंभीर होने पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती का आदेश दिया है, जिससे क्षेत्र में कानून व्यवस्था बहाल की जा सके।
राजनीतिक प्रतिक्रिया भी तीव्र रही है। पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने इस पूरी घटना के लिए सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया कि उनके तुष्टिकरण की नीति ने कट्टरपंथी तत्वों को खुली छूट दे दी है। भारतीय जनता पार्टी ने भी सरकार पर समय रहते कार्रवाई न करने का आरोप लगाते हुए पीड़ितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है।

यह घटना पश्चिम बंगाल में एक बार फिर से सांप्रदायिक सौहार्द की नाजुक स्थिति को उजागर करती है, जहां एक कानूनी संशोधन पर उठे विवाद ने सामाजिक ताने-बाने को झकझोर दिया है। हिंसा से प्रभावित लोगों के पुनर्वास और सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग उठ रही है। प्रशासन ने राहत कार्यों की शुरुआत की है, लेकिन अब भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है।
विशेष बात यह भी है कि इस पूरे घटनाक्रम में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) और इसके प्रमुख राज ठाकरे जैसे कथित हिंदुत्व समर्थक नेताओं की ओर से कोई प्रतिक्रिया या उपस्थिति देखने को नहीं मिली। नागपुर सहित महाराष्ट्र में हालिया हिंदू विरोधी घटनाओं पर भी एमएनएस की चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जिससे उनकी कथित वैचारिक प्रतिबद्धता पर संदेह गहरा गया है।