छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले से एक हृदयविदारक घटना सामने आई है, जहाँ अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण एक परिवार को अपनी मृतक महिला परिजन का शव 2.5 किलोमीटर तक पैदल ले जाना पड़ा। यह मामला सामने आने के बाद राज्यभर में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर आक्रोश और नाराज़गी फैल गई है।
55 वर्षीय कमला बाई की गुरुवार सुबह गरियाबंद जिला अस्पताल में मौत हो गई। परिजनों ने शव को घर ले जाने के लिए वाहन की माँग की, लेकिन अस्पताल कर्मियों ने यह कहते हुए मना कर दिया कि उस समय कोई शव वाहन उपलब्ध नहीं है। मजबूर होकर परिवार ने बाँस और कपड़े से अस्थायी स्ट्रेचर बनाया और शव को कंधों पर रखकर गाँव की ओर पैदल चल दिए।
📹 वीडियो वायरल
घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें परिवार को ग्रामीण सड़क पर शव उठाकर चलते हुए देखा जा सकता है। वीडियो ने अस्पताल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
🏛️ स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई
मामले पर सार्वजनिक आक्रोश के बाद स्वास्थ्य विभाग ने जांच के आदेश दिए हैं। गरियाबंद कलेक्टर दीपक सोनी ने पुष्टि की कि प्राथमिक जांच शुरू कर दी गई है और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
🩺 अस्पताल का पक्ष
अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि शव वाहन उस समय किसी अन्य कार्य में व्यस्त था। जिला अस्पताल के अधीक्षक डॉ. आर.के. मिश्रा ने घटना पर खेद जताते हुए कहा कि, “वाहन की अनुपलब्धता के कारण परिवार को असुविधा हुई, इसके लिए हम खेद व्यक्त करते हैं।”
⚡ जनता और राजनीति में आक्रोश
घटना ने राजनीतिक गलियारों में भी तीखी प्रतिक्रिया उत्पन्न की है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे “प्रशासनिक संवेदनहीनता का शर्मनाक उदाहरण” करार दिया और स्वास्थ्य विभाग से जवाबदेही की माँग की। स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि यह पहली बार नहीं है, अस्पताल अक्सर ग्रामीणों को शव वाहन उपलब्ध नहीं कराता।
📍 गंभीर सवाल खड़े
यह घटना सिर्फ गरियाबंद तक सीमित नहीं है। हाल ही में दंतेवाड़ा और बलरामपुर जिलों से भी इसी तरह की शिकायतें सामने आ चुकी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में शव वाहन और आपातकालीन सेवाओं की भारी कमी है, जो सरकारी योजनाओं की असफलता को दर्शाती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. मीरा शर्मा ने कहा, “यह केवल ढांचे की विफलता नहीं है, बल्कि गरिमा की भी असफलता है। किसी भी परिवार को इस तरह का दर्द सहना नहीं चाहिए।”