तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन का यूरोप और ब्रिटेन दौरा सरकार द्वारा निवेश आकर्षित करने के मिशन के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। लेकिन इस यात्रा को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं—क्या यह वास्तव में निवेश लाने का प्रयास है या फिर केवल राजनीतिक पीआर का प्रदर्शन?
सबसे ज़्यादा चर्चा में रहा स्टालिन का रोल्स-रॉयस अधिकारियों से मुलाक़ात। उनकी टीम ने दावा किया कि कंपनी तमिलनाडु में इंजन उत्पादन शुरू करेगी। यह खबर सोशल मीडिया पर तेज़ी से फैलाई गई। लेकिन उपलब्ध अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स बताती हैं कि रोल्स-रॉयस फिलहाल अपने इंजन मैन्युफैक्चरिंग का विस्तार अमेरिका के नॉर्थ कैरोलाइना में कर रहा है। तमिलनाडु को लेकर किसी ठोस प्रतिबद्धता का ऐलान नहीं किया गया। यह अंतर इस दावे की सच्चाई पर सवाल उठाता है।
मामला यहीं नहीं रुका। यह भी सामने आया कि सीएम के पीआर मैनेजमेंट की ओर से कुछ इन्फ्लुएंसर्स को पेड प्रमोशन की पेशकश की गई थी ताकि #StalinInEurope हैशटैग को ट्रेंड कराया जा सके। एक लीक मैसेज में पीआर एजेंसी ने ₹15,000 में ट्वीट करने का ऑफर दिया था, जिसे रिसीवर ने ठुकरा दिया और इस यात्रा को “टैक्सपेयर्स के पैसे की बर्बादी” बताया।
आलोचकों का कहना है कि सीएम का पूरा शेड्यूल ज़्यादा तर फोटो-ऑप्स, औपचारिक इवेंट्स और अस्पष्ट एमओयू से भरा रहा, जिससे यह दौरा एक रणनीतिक निवेश मिशन से ज़्यादा “क्यूरेटेड हॉलिडे” जैसा दिखाई दिया। हालांकि कुछ कंपनियों ने तमिलनाडु में निवेश की घोषणाएँ की हैं, लेकिन पारदर्शिता की कमी और बढ़ा-चढ़ाकर किए गए दावे गंभीर संदेह खड़े करते हैं।
लोकतंत्र में जनविश्वास सच्चाई पर टिका होता है। जब जनता के टैक्स के पैसे से इस तरह की विदेश यात्राएँ की जाती हैं, तो उसके परिणाम स्पष्ट, ठोस और राज्य के लिए लाभकारी होने चाहिए—न कि केवल राजनीतिक प्रचार का साधन। अगर यह आरोप सही हैं कि पीआर टीम फर्जी उपलब्धियों को प्रमोट करने के लिए पैसा खर्च कर रही है, तो यह न सिर्फ़ अनैतिक है बल्कि जनता के विश्वास के साथ विश्वासघात भी है।