काठमांडू, नेपाल — 9 सितंबर 2025
नेपाल सरकार द्वारा 4 सितंबर को अचानक 26 बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाने के फैसले ने देशभर के युवाओं में गुस्से की लहर पैदा कर दी। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप और एक्स जैसे मंच बंद होते ही राजधानी काठमांडू की सड़कों पर हजारों स्कूली छात्र किताबें हाथ में लिए उतरे। इन प्रदर्शनों के केंद्र में थे — 36 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता सुदान गुरुङ।
🎙️ सुदान गुरुङ कौन हैं?
सुदान गुरुङ पेशेवर राजनीतिज्ञ नहीं हैं और न ही किसी पार्टी या विदेशी फंड से जुड़े हैं। उनका जीवन 2015 की विनाशकारी भूकंप त्रासदी से बदला, जब उन्होंने अपने बच्चे को खो दिया। इसी घटना ने उन्हें नाइटलाइफ़ की दुनिया से निकालकर समाज सेवा की राह पर ला खड़ा किया और उन्होंने “हामी नेपाल” नामक आपदा राहत संगठन की स्थापना की। यही संगठन धीरे-धीरे युवाओं की सबसे बड़ी आवाज़ बन गया।
📲 बैन के खिलाफ डिजिटल प्रतिरोध
सोशल मीडिया बंद होते ही गुरुङ ने अराजकता की जगह प्रतीकात्मक विरोध का रास्ता चुना। उन्होंने छात्रों को निर्देश दिया कि वे यूनिफॉर्म पहनकर किताबें साथ लाएँ, नारेबाज़ी करें लेकिन हिंसा से दूर रहें। उनके शब्दों में — “उन्हें वो भविष्य दिखाओ जिसे वे चुप कराना चाहते हैं।”
गुरुङ और उनकी टीम ने VPN, एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप्स, इंस्टाग्राम और डिस्कॉर्ड का इस्तेमाल कर विरोध प्रदर्शनों का नक्शा तैयार किया, सुरक्षा प्रोटोकॉल साझा किए और छात्रों को लाइव मार्गदर्शन दिया। देखते ही देखते यह आंदोलन काठमांडू से पोखरा, बुटवल और भरतपुर तक फैल गया।
🔥 8 सितंबर: आंदोलन का टर्निंग प्वाइंट
संघीय संसद परिसर के बाहर प्रदर्शन अचानक हिंसक मोड़ पर पहुंच गया। पुलिस ने आंसू गैस, वाटर कैनन और गोलियाँ दागीं। इसमें कम से कम 19 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। नतीजतन, गृहमंत्री रमेश लेखक को इस्तीफा देना पड़ा और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने उसी शाम सोशल मीडिया बैन वापस लेने की घोषणा की।
🧠 रणनीति: तकनीक और जनशक्ति का संगम
गुरुङ ने आंदोलन को सुनियोजित ढंग से खड़ा किया:
- सैटेलाइट मैप और लोकल इंटेलिजेंस से रूट तय करना।
- टेलीग्राम और सिग्नल पर निर्देश साझा करना।
- वॉलंटियर्स को हिंसा रोकने और घायलों की मदद करने की ट्रेनिंग देना।
- सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स को बिना राजनीतिक रंग दिए संदेश फैलाने में जोड़ना।
💡 क्यों कर रहे हैं संघर्ष?
गुरुङ का मानना है कि नेपाल का युवा वर्ग सरकार की नजरों में बोझ समझा जाता है, संपत्ति नहीं। बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अपारदर्शी संस्थागत ढांचे से जूझ रही जेन-जेड पीढ़ी के लिए सोशल मीडिया बैन अंतिम चिंगारी साबित हुआ।
🧭 आगे की राह
बैन हटने के बाद अब सुदान गुरुङ की छवि सिर्फ एक आंदोलनकारी नहीं, बल्कि “सिविक आर्किटेक्ट” की बन गई है। खबर है कि उनका संगठन संसद को सौंपने के लिए एक डिजिटल राइट्स चार्टर और यूथ पॉलिसी फ्रेमवर्क तैयार कर रहा है। हालांकि बड़ा सवाल यह है कि क्या बिना राजनीतिक समर्थन के यह आंदोलन टिक पाएगा, या फिर सरकार निगरानी और कानूनी कार्रवाई से जवाब देगी।