रायपुर, छत्तीसगढ़ की राजधानी, इन दिनों अपनी पुलिस व्यवस्था पर उठ रहे सवालों के बीच भरोसे के संकट से गुजर रही है। देश की अन्य राज्य राजधानियों की तुलना में जहां पुलिस व्यवस्था लगातार आधुनिक हो रही है, वहीं रायपुर पुलिस अब भी मूलभूत सुरक्षा और ट्रैफिक नियंत्रण जैसी प्राथमिक जिम्मेदारियों को निभाने में पिछड़ती दिख रही है। इससे आम नागरिकों में असंतोष और असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है।
तेजी से विकसित हो रहे शहर रायपुर में ट्रैफिक व्यवस्था चरमराई हुई है। प्रमुख चौराहों पर पुलिस की उपस्थिति बेहद कम है, विशेषकर व्यस्त समय में। ट्रैफिक पुलिस की गतिविधियां केवल नो-पार्किंग जोन से वाहनों को उठाने या चालान काटने तक सीमित दिखाई देती हैं, जबकि सड़कों पर जाम, अव्यवस्था और पैदल यात्रियों की सुरक्षा जैसी समस्याएं अनसुलझी हैं। सरकारी वेबसाइट पर सड़क सुरक्षा और जनजागरूकता के अभियान तो दिखते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उनका असर न के बराबर है।
अपराध के मोर्चे पर भी रायपुर की स्थिति चिंताजनक है। हालिया आंकड़ों में जहां चोरी और मारपीट जैसे अपराधों में कमी दिखाई जा रही है, वहीं हत्या और लूट जैसी गंभीर वारदातों में वृद्धि देखी जा रही है। नागरिकों के अनुसार, चाकूबाजी, चोरी और लूट की घटनाएं आम हो चुकी हैं। कई मामलों में पुलिस की धीमी जांच, कमजोर साक्ष्य संकलन और संपत्ति की रिकवरी न हो पाने से अपराधियों का मनोबल बढ़ रहा है। 2025 के सुरक्षा सूचकांक में रायपुर को मध्यम दर्जे का शहर बताया गया, लेकिन यह आंकड़ा केवल दिन के समय की सुरक्षा पर आधारित है, जबकि रात के समय असुरक्षा का स्तर काफी अधिक है।
रायपुर पुलिस की जवाबदेही को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। धीमी प्रतिक्रिया, गश्त की कमी, केस निपटान में देरी और कमजोर दस्तावेजीकरण जैसी खामियां आम हैं। अधिकांश मामलों में गिरफ्तारी के बावजूद सजा नहीं हो पाती क्योंकि साक्ष्य संग्रह और फोरेंसिक जांच की प्रक्रिया कमजोर है। जनता में भरोसा तेजी से घट रहा है और कई लोग अब सोशल मीडिया के माध्यम से पुलिस की निष्क्रियता उजागर कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि रायपुर पुलिस की समस्या केवल संसाधनों की नहीं बल्कि प्रणालीगत ढांचे की है। आधुनिक तकनीक का सीमित उपयोग, सामुदायिक पुलिसिंग की अनुपस्थिति और प्रशिक्षण की कमी ने पुलिस और जनता के बीच की दूरी बढ़ा दी है।
जरूरत है कि रायपुर पुलिस अपने कार्यशैली में ठोस सुधार लाए। ट्रैफिक पुलिस को केवल दंडात्मक नहीं, बल्कि नियामक भूमिका निभानी चाहिए। अपराध जांच में पारदर्शिता और दक्षता लाने की आवश्यकता है। सबसे अहम बात, जनता के साथ संवाद और जवाबदेही के माध्यम से पुलिस को अपना भरोसा पुनः अर्जित करना होगा।
अगर सुधार शीघ्र नहीं किए गए तो रायपुर उस विफलता का प्रतीक बन सकता है, जहां तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण कानून व्यवस्था से आगे निकल गया और पुलिस जनता की जरूरतों से पीछे रह गई।



